देहरादून। संविधान बचाओ रैली के नाम पर कांग्रेस ने आज देहरादून में शक्ति प्रदर्शन किया। दिग्गज नेता सचिन पायलट कार्यकर्ताओं में जोश भरने राजस्थान से देहरादून आये लेकिन प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा ने हरियाणा से देहरादून आना मुनासिब नहीं समझा। पिछले कुछ दिनों से जब रैली का प्रचार प्रसार किया जा रहा था तो कुमारी शैलजा के आने का ढिंढोरा पीटा जा रहा था लेकिन ऐनमौके पर उनकी ना ने कांग्रेसियों को सकते में डाल दिया।
कांग्रेस पिछले कई सालों से नेरेटिव सेट कर रही है कि देश में संविधान खतरे में है। मोदी सरकार पर चैतरफा हमले किए जा रहे हैं। इसी बीच 9 अप्रैल को ईडी ने नेशल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिये। इसके बाद कांग्रेस और ज्यादा मुखर हो गई और पार्टी की ओर से देश भर में 25 अप्रैल से 30 अप्रैल तक श्संविधान बचाओ रैलीश् निकालने का ऐलान कर दिया गया। कहा गया कि इन रैलियों का उद्देश्य सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय का संदेश देना है। इसी क्रम में आज देहरादून में संविधान बचाओ रैली आयोजित की गई। राजस्थान से सचिन पायलट आये और अपनी बात कहा कर चले गये लेकिन प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा का न आना चर्चाओं में रहा।
कुमारी शैलजा कांग्रेस की बड़ी नेता हैं। सिरसा हरियाणा से सांसद हैं। एआईसीसी की महासचिव भी हैं। उन्हें सोनिया की किचन कैबिनेट का मेम्बर माना जाता है। शैलजा को 24 दिसम्बर 2023 को उत्तराखण्ड कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया था। उनसे पहले के प्रभारी देवेन्द्र यादव की छुट्टी इसलिए हुई थी क्योंकि वह उत्तराखण्ड के क्षत्रपों को साथ लाने में नाकाम रहे थे। शैलजा आईं तो उनसे उम्मीद बंधी लेकिन अब तक वह गुटबाजी दूर करने का करिश्मा नहीं कर पाई हैं। शैलजा को उत्तराखण्ड की कमान मिले सवा साल से ज्यादा का अरसा बीत गया है लेकिन यहां उनकी सक्रियता न के बराबर रहीं। इस अवधि में वह अभी तक एक आध बार 15 जनवरी 2024 और 10 फरवरी 2024 को ही उत्तराखण्ड आई हैं। लोकसभा और निकाय चुनाव में तो वह दूर-दूर तक नजर नहीं आईं। आज संविधान बचाओ रैली में भी उनका न पहुंचना सवाल खड़े करता है।
दरअसल, कुमारी शैलजा का गृह प्रदेश हरियाणा है। वहां भी कांग्रेसियों में गुटबाजी उत्तराखण्ड से कतई कम नहीं है। बीते विधानसभा चुनाव में तो भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच की तनातनी इस कदर जगजाहिर हुई कि पार्टी का बेड़ागर्क हो गया। सार्जवनिक तौर पर दोनों नेताओं ने एक दूसरे के खिलाफ खुलकर बयानबाजी की जिससे कांग्रेस हाईकमान के सामने अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई थी। कुछ दिनों के लिए शैलजा कोप भवन में चली गईं। किसी तरह हाईकमान ने उन्हें मनाया। कहा जाता है कि हुड्डा और शैलजा की इस लड़ाई की वजह से ही हरियाणा में कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाई जबकि वहां सरकार बनती हुई दिख रही थी। हां ! शैलजा ने उत्तराखण्ड में प्रभारी होने का दम 8 सितम्बर 2024 में उस वक्त दिखाया था जब प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा की ओर से प्रदेश कांग्रेस में की गई नियुक्तियों को उन्होंने निरस्त कर दिया। कहा गया कि ये नियुक्तियां एआईसीसी से पूछकर नहीं की गई थीं।
काम’ की नहीं, सिर्फ ‘नाम’ की प्रभारी
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