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Tuesday, March 18, 2025
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वन्यजीव संरक्षण में नवीनतम तकनीक के उपयोग को देखकर संतुष्ट हूंः राज्यपाल

देहरादून। उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (से0नि) गुरमीत सिंह ने भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून में वन्यजीव प्रबंधन में 39वें प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम के अधिकारी प्रशिक्षुओं को सम्मानित किया और विशिष्ट स्मृति चिन्ह स्टोर का उद्घाटन किया, जिसमें वन्यजीव-थीम वाले उत्पाद और स्मृति चिन्ह उपलब्ध हैं। इस पहल का उद्देश्य संस्थान द्वारा वन्यजीव संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है। राज्यपाल ने 39वें वन्यजीव प्रबंधन प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। यह पाठ्यक्रम भारत के विभिन्न राज्यों के रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, डिप्टी रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर और समकक्ष अधिकारियों के लिए तीन महीने का प्रशिक्षण कार्यक्रम है, जो भारतीय वन्यजीव संस्थान में आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर राज्यपाल ने अधिकारी प्रशिक्षुओं को प्रमाणपत्र और पदक भी प्रदान किए।
वन्यजीव संरक्षण गोल्ड मेडलश् सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षु बेथसेबी लालरेम्रुआती, रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, मिजोरम को दिया गया। श्सिल्वर मेडल फॉर बेस्ट ऑल राउंड वाइल्डलाइफर उमेश, रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, राजस्थान को प्रदान किया गया और श्सिल्वर मेडल फॉर बेस्ट परफॉर्मेंस इन वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट मॉड्यूल राहुल उपाध्याय, रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, मध्य प्रदेश को प्राप्त हुआ। माननीय राज्यपाल ने सभी प्रशिक्षुओं और विशेष रूप से पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त ज्ञान देशभर में वन्यजीव प्रबंधन में बेहतर योगदान देगा।
साथ ही राज्यपाल ने वरिष्ठ वन्यजीवविदों, स्व. डॉ. ए.जे.टी. जॉनसिंह और डॉ. जी.एस. रावत के प्रयासों की सराहना की, जिन्होंने 2022 में जिम कॉर्बेट के ऐतिहासिक मार्गों की फिर से खोज की, जिसमें मानव-वन्यजीव संघर्ष स्थलों पर ध्यान केंद्रित किया गया था, जो बाघों और तेंदुओं से संबंधित थे। इस अन्वेषण को श्कॉर्बेट ट्रेलश् नामक 70 मिनट की डॉक्युमेंट्री में प्रदर्शित किया गया, जो क्षेत्र के इकोटूरिज्म और प्राकृतिक धरोहर की सराहना करती है। राज्यपाल ने कहा कि श्मैं वन्यजीव समुदाय में एक सकारात्मकता महसूस करता हूं और वन्यजीव संरक्षण में नवीनतम तकनीक के उपयोग को देखकर संतुष्ट हूं।
इसके अलावा राज्यपल ने एडवांस पश्मीना प्रमाणन केंद्र का दौरा किया, जो पश्मीना उत्पादों की प्रामाणिकता प्रमाणित करने और वन्यजीव अपराधों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अब तक, इस केंद्र ने 16,000 से अधिक पश्मीना शॉल प्रमाणित किए हैं। उन्होंने संस्थान के वन्यजीव फॉरेन्सिक लैब का भी दौरा किया, जो वन्यजीव उत्पादों के अवैध व्यापार पर काबू पाने और वन्यजीव संबंधित अपराध मामलों को हल करने में सहायता कर रहा है। कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल ने संस्थान की दो पुस्तकों , ब्रेन जिम एक्टिविटी-नदी पर निर्भर जानवर और और गंगा और इसकी सहायक नदियों का उत्सव का विमोचन भी किया। ब्रेन जिम एक्टिविटी पर आधारित पुस्तकें स्कूल बच्चों के लिए विकसित की गई हैं, ताकि उन्हें नदी पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के प्रति जागरूक किया जा सके। दूसरी पुस्तक श्गंगा और इसकी सहायक नदियों का उत्सवश् गंगा नदी बेसिन में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों और समारोहों के साथ-साथ नदी पारिस्थितिकी तंत्र और इसकी जैव विविधता पर प्रकाश डालती है। यह पुस्तक गंगा और उसकी सहायक नदियों के सांस्कृतिक, आजीविका और समुदाय विकास में योगदान को भी दर्शाती है। राज्यपाल ने संस्थान द्वारा स्थापित एक डिजिटल रिपॉजिटरी का भी उद्घाटन किया, जिसमें शोध प्रबंध, पीएचडी डिसर्टेशन, तकनीकी रिपोर्ट और अन्य प्रकाशित सामग्री का संग्रह है।
इसके अलावा, माननीय राज्यपाल ने जल जीवन मिशन के तहत जल खाता अभियान की शुरुआत की, जो स्कूल बच्चों और स्थानीय समुदायों को वर्षा जल संरक्षण प्रयासों में शामिल करने के उद्देश्य से आयोजित किया जाएगा। यह अभियान पहले उत्तराखंड के स्कूलों और समुदायों में शुरू होगा और बाद में गंगा बेसिन के अन्य राज्यों में विस्तारित किया जाएगा। कार्यक्रम के बाद राज्यपाल ने संस्थान के वैज्ञानिक और रजिस्ट्रार, डॉ. एस. सत्यकुमार को उनकी तीन दशकों से अधिक सेवा के लिए शुभकामनाएँ दीं। डॉ. सत्यकुमार ने उत्तराखंड और अन्य हिमालयी राज्यों में खासकर मस्क डियर, भालू और हिम तेंदुए के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और 200 से अधिक शोध पत्र और रिपोर्ट प्रकाशित की हैं। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक, वीरेंद्र आर. तिवारी ने राज्यपाल का धन्यवाद किया और कहा कि संस्थान देश में वन्यजीव संरक्षण रणनीतियों में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है।

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