देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की शाखा, 70 इंदिरा गांधी मार्ग, (सत्यशील गैस गोदाम के सामने) निरंजनपुर के द्वारा आज आश्रम प्रांगण में दिव्य सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। संस्थान के संस्थापक एवं संचालक ‘‘सद्गुरू श्री आशुतोष महाराज जी’’ की शिष्या तथा देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी सुभाषा भारती जी ने अपने प्रवचनों के द्वारा उपस्थित भक्तजनों को बताया कि भक्ति के मार्ग में शिष्य की लक्ष्य प्राप्ति तभी सुलभ-सहज़ हो पाती है जब वह अपने सद्गुरूदेव की आज्ञा में पूर्णतः चला करता है। भाई लहना तभी गुरू अगंद देव जी बन पाए जब वे अपने गुरू की आज्ञा में चले। गडरिये से सम्राट चंद्रगुप्त में परिवर्तित होना भी तभी सम्भव हुआ जब वह अपने गुरू चाणक्य के आदेशों का पालन कर पाए। शिवा जब अपने गुरू समर्थ रामदास के आधीन हुए, उनकी पूर्ण आज्ञा में स्वयं को लगाया तभी वे छत्रपति शिवाजी बन पाए। गुरू के वाक्य ‘मंत्र’ के सदृश्य हुआ करते हैं। पूर्ण गुरू ‘सर्व समर्थ’ हुआ करते हैं और उनके द्वारा सहज़ता से भी कहा गया वाक्य ‘ब्रह्म्वाक्य’ होता है जो कि समय आने पर अवश्य ही फलीभूत हुआ करता है। गुरू आज्ञा रूपी लक्ष्मण रेखा के भीतर चलने वाले शिष्य को तीनों लोकों में सद्गुरू निर्भय बना दिया करते हैं। साध्वी जी ने कहा कि दो तरह के शिष्य हुआ करते हैं, एक मनमुख तथा दूसरा गुरूमुख। मनमुख शिष्य मन के आधार पर चला करता है, गुरू के वचनों को वह साधारण रूप से लिया करता है अतः एैसा शिष्य लक्ष्य प्राप्ति किए बिना ही मार्ग से च्युत हो जाया करता है जबकि गुरूमुख शिष्य अपने गुरूदेव के मुख अर्थात उनके वचनों का अक्षरशः पालन करते हुए भक्ति मार्ग पर निरंतर आगे ही आगे बढ़ता चला जाता है और अपना लक्ष्य (परमात्मा) की प्राप्ति गुरू कृपा से सहज़ ही कर लिया करता है।
आज के कार्यक्रम का भी सुन्दरतम् भजनों की प्रस्तुति देते हुए शुभारम्भ किया गया। मंचासीन संगीताचार्यों ने मनभावन भजनों का गायन करते हुए उपस्थित भक्तजनों को झूमने पर विवश कर दिया। 1. प्रभु आ जाओ अब आ जाओ, मेरे नैना कब से तरस रहे, सावन भादो में बरस रहे, प्रभु आ जाओ, प्रभु आ जाओ……. 2. आना है तो आ राह में फेर नहीं है, भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है…… 3. तेरी सादगी ने हमें जीत लिया, राजदार था रंगदार कर दिया…… 4. रहें तेरे दर्शन अंखियन मंे आस बन के…… तथा 5. मुझे अपने ही रंग में रंग दे….. इत्यादि भजनों से खूब समां बांधा गया।
भजनों में व्याप्त गूढ़ आध्यात्मिक तथ्यों की विवेचना करते हुए मंच का संचालन साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी द्वारा किया गया। साध्वी जी ने बताया कि सद्गुरू अपने शरणागत् शिष्य पर वास्तविक उपकार करते हुए उसे संसार के मायाजाल से निकालकर परमात्मा के साम्राज्य का अधिकारी बना दिया करते हैं। वे अपने शिष्य पर अनन्त कृपा करते हुए उसके उस त्रिनेत्र को उजागर कर देते हैं, जिसके द्वारा वह अनन्त परमात्मा का दीद़ार कर उनमें ही विलीन हो जाता है। शास्त्र भी कहता है- सद्गुरू की महिमा अनन्त है, अनन्त किया उपकार, लोचन अनन्त उघारिया, अनन्त दिखावनहार। साध्वी जी ने आगे बताया कि परमात्मा के यहां अंधेर का तो नामोंनिशान भी नहीं होता साथ ही यहां देर भी बिल्कुल नहीं हुआ करती। भक्त की पुकार में देर हो सकती है मगर प्रभु की कृपा में कतई देर नहीं हुआ करती द्रौपदी जब तक एक हाथ से साड़ी का पल्लू पकड़े रही तब तक कान्हा नहीं आए, जैसे ही उन्होंने कान्हा से पुकार लगाई और हाथ से पल्लू छोड़ा तुरन्त भगवान श्रीकृष्ण चीर अवतार के रूप में प्रकट हो गए और भरी सभा मंे पंाचाली की लाज बचाई। ईश्वर पर ‘भरोसा’ ही भक्त की शक्ति हुआ करता है।
प्रसाद का वितरण कर साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।
लक्ष्य की प्राप्ति में ‘गुरू आज्ञा’ का सर्वाेपरि महत्वः सुभाषा भारती
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