देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की शाखा, 70 इंदिरा गांधी मार्ग, (सत्यशील गैस गोदाम के सामने) निरंजनपुर के द्वारा आश्रम प्रांगण में दिव्य सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। संस्थान के संस्थापक एवं संचालक ‘‘सद्गुरू आशुतोष महाराज’’ की शिष्या तथा देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती ने अपने प्रवचनों के द्वारा उपस्थित भक्तजनों को बताया कि भक्ति का मार्ग महापुरूषों ने भले ही अत्यन्त दुरूह मार्ग बताया हो, लेकिन एक भक्त जब अपने आराध्य पर प्रचंड और अखण्ड विश्वास रखते हुए इस मार्ग पर दृढ़तापूर्वक अग्रसर होता है तो मंजिल उसके कदमों में हुआ करती है। एक जीवात्मा सद्गुरू प्रदत्त ‘ब्रह्म्ज्ञान’ के आलोक में जब श्रद्धा और विश्वास का मज़बूत सम्बल लेकर आगे बढ़ता है तो पूर्ण गुरू कदम-कदम पर उसे अपना दिव्य निर्देशन तथा पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हुए उसे मार्ग में अग्रसर किया करते हैं। जीवात्मा की यदि दिशा सही है तो निश्चित रूप से उसकी दशा भी उत्तम होगी। जिस प्रकार एक नदी जिसका लक्ष्य सागर में विलीन होकर स्वयं सागर हो जाना है, यदि इसकी दिशा रेगिस्तान की ओर हो जाए तो यह उसके ही रेत द्वारा सोख ली जाएगी, लेकिन यदि इसकी निर्मल जलधारा वाष्प बनकर रेगिस्तान के ऊंपर से गुज़रते हुए आगे चलकर पुनः वर्षा भरे बादलों के रूप में बरस कर नदी का ही रूप धारण कर ले तो वह स्वयं को अपनी मंज़िल सागर तक पहुंचा सकती है।
सद्गुरू एक करूणाकरण सत्ता हुआ करते हैं जो कि जन्मों-जन्मों से भटकती जीवात्मा को संसार के माया रूपी रेगिस्तान में ज़ज्ब होने से पूर्व अपनी कृपा रूपी बादलों में परिवर्तित कर उसे उसके परम लक्ष्य परमात्मा के साथ मिला दिया करते हैं। साध्वी जी ने माया को परिभाषित करते हुए कहा कि- माया अर्थात जो कि अस्तित्व विहीन है, जिसका कोई वास्तविक आधार ही नहीं है, यह माया है, जो कि भासती तो है परन्तु वास्तव में है नहीं। संसार में संत ही एक मात्र एैसे दयालु हुआ करते हैं जो कि अपनी ‘अहैतुकी’ कृपा से जीव मात्र का परम कल्याण किया करते हैं। एैसे करूणामयी संतों के लिए ही कहा भी गया- ‘आग लगी आकाश (मस्तिष्क) में, झर-झर गिरत अंगार,संत न होते जगत में तो, जल मरता संसार’
कार्यक्रम में सदैव की भांति मंचासीन संगीतज्ञों ने अपने भजनों की अविरल प्रस्तुति देते हुए भक्तजनों को भाव-विभोर कर दिया। 1. सब पे दया कर दो प्रभु जी, हो करूणा के स्वामी तुम….. 2. बना रहे विश्वास हमारा, बना रहे विश्वास…… 3. किया मैंने तुझी पे एतबार कि आगे प्रभु तू जाने, तेरे चरणों में रहे मेरा प्यार, कि आगे प्रभु तू जाने…… 4. एक तुम्हीं हो प्राण हमारे, आस तुम्हीं, विश्वास तुम्हीं हो…… 5. रक्षा का सूत्र बाँधा तुमको, बंधन दुनिया से प्यारा है हमको…… इत्यादि भजनों द्वारा चँहु ओर आनन्द ही आनन्द छा गया।
भजनों की व्याख्या करते हुए मंच का संचालन साध्वी विदुषी ममता भारती जी के द्वारा किया गया। साध्वी जी ने बताया कि सद्गुरू का ‘करूणा स्वरूप’ जब जगत में अवतरित हुआ करता है तब वे सम्पूर्ण जगत पर अपनी कृपा बरसाते हैं तथा उनका दिव्य मिशन ‘विश्व शांति’ एक वृहद आकार लेता हुआ जन-जन को शांति और आनन्द की प्राप्ति करवाता है। सद्गुरू को इसीलिए समस्त धर्म-ग्रन्थ-शास्त्र, करूणा सिंधु या करूणा का सागर कहकर उनकी अभिवंदना किया करते हैं। अपने शरणागत् की समस्त भूलों-गलतियों को क्षमा कर सद्गुरूदेव अपनी पावन शरण प्रदान कर दिया करते हैं और उसे कल्याण पथ पर अग्रसर कर उसके जन्म-जन्मान्तरों के कर्म-संस्कारों से उसे मुक्ति प्रदान करते हैं। संस्थान द्वारा आश्रम में रक्षा बंधन का स्नेह पर्व मनाया जाएगा, सभी साधक शिष्य-शिष्याएं अपने ‘सद्गुरूदेव सर्व आशुतोष महाराज’ को रक्षा सूत्र बांधकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।
‘विश्वासम् फल दायकम’, भक्ति मार्ग का अमोघ सूत्रः जाह्नवी भारती
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